सरसों की फसल के जानलेवा है ये 4 रोग, जानें लक्षण और रोकथाम के उपाय – Sarso Ki Kheti

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Sarso Ki Kheti : सरसों, एक ऐसी तिलहनों की राजा फसल है जो रबी के मौसम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस फसल का भारतीय अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख स्थान है, लेकिन वर्तमान में देश के कई राज्यों में सरसों की फसल को घेरे हुए कई रोग देखने को मिल रहे हैं।

हालांकि, इन दिनों कड़ाके की ठंड और कोहरे के कारण सरसों की फसल पर रोगों का भयंकर प्रकोप बढ़ रहा है। इससे स्पष्ट है कि किसानों के मन में सरसों की फसल के पैदावार के संबंध में चिंता बढ़ रही है, क्योंकि इन रोगों से उत्पादन में कमी हो सकती है और इससे किसानों पर आर्थिक दबाव बढ़ सकता है।

इन रोगों और कीटाणुओं का समय पर नियंत्रण करने से सरसों के उत्पादन में सुधार किया जा सकता है। आइए, सरसों की फसल को बचाने के लिए कुछ उपाय जानें।

मुख्य बिन्दु

ये चार रोग साबित हो रहे है सरसों के लिए घातक

सरसों की फसलों को देखभाल करते समय, तना गलन रोग, झुलसा रोग, सफेद रोली रोग, और तुलासिता रोग से बचाव करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। ये सरसों के मुख्य रोग हैं और इनके संक्रमण से उत्पादन में कमी हो सकती है।

इस रोग से प्रभावित होने पर, किसानों की मेहनत का परिणाम पानी में बह जाता है और सरसों के दाने उचित रूप से विकसित नहीं हो पाते हैं।

Sarso Ki Kheti मे तना गलन रोग – लक्षण और उपाय

सरसों की फसलों Sarso Ki Kheti को बचाने के लिए तना गलन रोग से जुड़ी खबरें सामने आ रही हैं। इस खतरनाक रोग के कारण फसल में 35 फीसदी तक की कमी हो सकती है। खासकर तराई और जलभरे क्षेत्रों में इसका असर ज्यादा दिख रहा है।

सरसों की खेती मे तना गलन रोग लक्षणों पर ध्यान दें

इस रोग के लक्षणों में पौधों की मुरझाहट और तने के चारों ओर कवक जाल बनना शामिल हैं। साथ ही, पौधों की ग्रोथ में रुकावट आती है। यदि आपकी फसल इस समस्या से प्रभावित हो रही है, तो तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए।

सरसों की खेती मे तना गलन रोग नियंत्रण के लिए उपाय

किसानों को सुझाया जा रहा है कि सरसों की बुआई के 50-60 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 0.1 फीसदी की 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। इसे 20 दिन के अंतराल पर फिर से करना चाहिए, यदि आवश्यक हो।

अगर Sarso Ki Kheti में तना गलन रोग का सही से सामना नहीं किया गया, तो फसल में नुकसान हो सकता है। इसलिए, किसानों से अनुरोध है कि वे अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए उपायों को ध्यानपूर्वक अपनाएं।

सरसों की खेती मे झुलसा रोग – लक्षण और उपाय

झुलसा रोग: बचाव और उपाय

सरसों की फसल Sarso Ki Kheti में झुलसा रोग के लक्षणों का सामना कर रहे हैं? इसे समझना अभी और भी आसान हो गया है। यह रोग पौधों की निचली पत्तियों से शुरू होता है, जिससे पत्तियों पर छोले, हल्के काले, और गोल धब्बे बनते हैं। धब्बे में गोल छल्ले साफ नजर आते हैं, जिसे किसानों को ध्यान में रखना चाहिए।

रोकथाम के लिए सुझाव:

Sarso Ki Kheti मे झुलसा रोग से बचाव के लिए, सल्फर युक्त रसायनों का इस्तेमाल करना आपकी फसल के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। किसानों को इस रसायन का घोल बनाकर फसलों पर छिड़काव करने की सिफारिश की जा रही है। यह छिड़काव हर 15 दिनों के अंतराल पर किया जाए, और यदि आवश्यक हो, तो इसे दोहराया जा सकता है।

अब, किसानों को इस समस्या से निपटने के लिए उपयुक्त उपायों की ओर कदम बढ़ाने का समय है।

सरसों की खेती मे सफेद रोली रोग – लक्षण और उपाय

सरसों की खेती मे सफेद रोली रोग: लक्षण और बचाव

Sarso Ki Kheti में सफेद रोली बीमारी के लक्षणों का सामना कर रहे हैं? इस बीमारी के कारण पौधे में भोजन लेने की क्षमता कम हो जाती है, और साथ ही रोली सरसों के पत्तों के साथ तने के रस को चूस लेती है, जिससे पौधा पनपता नहीं है और दाना कमजोर पड़ जाता है।

सरसों की खेती मे सफेद रोली रोग रोकथाम के उपाय:

किसानों को सफेद रोली बीमारी के खिलाफ सुरक्षा के लिए प्रति एकड़ 25 किलो सल्फर पाउडर का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा, किसान क्रोफेन लिक्विड कीटनाशक का छिड़काव भी कर सकते हैं। यह सुनिश्चित करेगा कि फसल सुरक्षित रहे और सही से विकसित हो।

Sarso Ki Kheti मे तुलासिता रोग – लक्षण और उपाय

सरसों की खेती मे तुलासिता रोग: लक्षण और बचाव

Sarso Ki Kheti मे तुलासिता रोग के लक्षणों के साथ निपटने का समय है। जब यह रोग पत्तियों की निचली स्तर पर प्रकट होता है, तो बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं, जो समय के साथ बड़े हो जाते हैं। इससे रोग जनक की बैंगनी रंग की बढ़ोतरी रुई के समान लगती है। जब रोग पूर्ण रूप से विकसित होता है, तो फूल कलियां नष्ट हो जाती हैं।

सरसों की खेती मे तुलासिता रोग रोकथाम के उपाय:

Sarso Ki Kheti मे को इस खतरनाक रोग से बचाने के लिए, किसानों को कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का उपयुक्त समाधान है। यह दवा को 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर एक घोल बनाना चाहिए और फिर इसे फसल पर छिड़कना चाहिए। यदि आवश्यक हो, तो यह छिड़काव 20 दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है। इससे सुनिश्चित होगा कि फसल स्वस्थ रहे और उत्पादन में वृद्धि हो।

निष्कर्ष (Conclusion):

सरसों के उत्पादन में रोगों के प्रकोप से निपटने के लिए इस समय का महत्वपूर्ण है। तना गलन, झुलसा, सफेद रोली, और तुलासिता रोग – इन सभी समस्याओं का Sarso Ki Kheti मे समाधान करने के लिए उचित उपायों का अनुसरण करना किसानों के लिए आवश्यक है।

सल्फर, कॉपर ऑक्सीक्लोराइड, और क्रोफेन जैसी उपयुक्त रसायनों का प्रयोग कर रोगों के खिलाफ संघर्ष करना आवश्यक है। सबसे महत्वपूर्ण है किसानों को समय पर रोगों की पहचान करना और उचित उपचार का अनुसरण करना, ताकि उनकी फसल सुरक्षित रहे और उत्पादन में वृद्धि हो।

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